विषय : अस्तित्व
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पंखुड़ी बेटा ,पंखुड़ी बेटा बुआ आवाज लगा रही थी। जब भी वह आती पंखुड़ी को एहसास दिलाती कि बेटियाँ पराई होती है ,बेटे ही नाम रोशन करते हैं, बेटी अस्तित्व हीन होती है ।
"पंखुड़ी तुम्हें ही पापा का नाम रोशन करना है। तुम सबसे बड़ी संतान हो , अपने आपको बेटी और कमजोर मत समझना, तुम उनका बेटा ही हो। पापा का नाम करना खूब मन लगाकर पढ़ना।"
पंखुड़ी छोटी थी उस समय तो कुछ समझ नहीं पाती थी ।
कुछ सालों बाद पंखुड़ी दसवीं में पूरे जिले में प्रथम आई, बुआ ने फिर कहा -"तुम भैया का बड़ा बेटा खूब नाम कमा रही हो । "
और फिर बुआ जी के रहते ही राष्ट्रीय स्तर की निबंध प्रतियोगिता "नारी का अस्तित्व" का परिणाम निकला ,उसे प्रथम स्थान मिला था ।
जब बुआ जी ने वही पुरानी वाली बात दोहराई तो आज पंखुड़ी से चुप नहीं रहा गया ।उसने बड़े प्यार से कहा बुआ जी बेटी को बेटा कहकर उसके अस्तित्व को नकारने की कोशिश बंद कीजिए। मैं बेटी हूँ और पापा को मुझ पर गर्व है ।बेटा कहकर मेरे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगे यह मुझे पसंद नहीं। मेरे मम्मी पापा ने आज तक मेरे बेटी होने का फर्क नहीं किया मुझे ज्यादा प्यार दिया । आप मेरे भाइयों को क्या बेटी बोल कर बुला सकती हैं?
जब यह नहीं हो सकता बेटों का अस्तित्व बेटी नहीं बन सकता तो फिर बेटी को बेटा कहकर क्यों उसके आत्मसम्मान को छीना जाता है ।
शांत ,सौम्य ,संस्कारी पंखुड़ी बेटी के इस सहसा उपजे सवाल से पापा खड़े मुस्कुरा रहे थे ।
आज वाकई पंखुड़ी तुमने नारी के अस्तित्व की लड़ाई जीत ली है।
अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कट ओमान
स्वरचित, मौलिक
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नाम : अंशु प्रिया अग्रवाल
कार्य : गणित शिक्षिका
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