खूनी खेल

खूनी खेल 

मौत के खेल खेलता था जो 
आज उसका अंत हो गया।

कल तक थे कुछ उसमें लिप्त
आज मौके पे सन्त हो गया।

करता था मौत जो व्यापार।
हुआ भ्रम दूर लोगों का जो करते
थे इधर उधर उसके लिए प्रचार।

अब सोचता हू आखिर ये कैसे
 इंसान दानव हुआ इस बात पे रिसर्च हो।

इसको उकसाने वाला कठपुतली की
 तरह नचाने वाले लोगो की सर्च हो।

क्योंकि एक आदमी सरेआम तो 
आठ रक्षक को युही ऐसे मारता नही।
बिना खबर के मौत के घाट उतारता नही।

अरे ये कुख्यात डाकू से कम नही।
इसीलिए आज सायद 
उसके माँ की आँखे नम नही।

तीस वर्ष से वो तो ये खेल खेलता रहा।
क्या हुई चूक उस कानून से जिसको 
एक अबोध बालक जान बड़े प्यार से झेलता रहा।

बम हथ गोले आदि दर्जनों मील रहा।
आज चप्पा चप्पा मीडिया भी कहता रहा।

यही कहूँगा की नजर चौकस रखों यारों।
एक आम आदमी के दानव बनने से
 पहले इतना भी बौकस मत बनो यारों।

 *प्रकाश कुमार* 
 *मधुबनी* , बिहार 
मोबाईल न. 9560205841

Badlavmanch

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