शीतल मन हरदम रही ,खुद करी पश्चाताप ।कटी सकत नाहीं कबहु ,गंग नह इले पाप ।।

भोजपुरी कुण्डलियाँ 

                   1
शीतल मन हरदम रही ,खुद करी पश्चाताप ।
कटी सकत नाहीं कबहु ,गंग नह इले पाप ।।
गंग नह इले पाप ,खुद पर करी अनुशासन ।
मन पर अंकुश राख ,सभही पावल उचांसन ।
कह बाबू कविराय ,जगत में उहे जीतल ।
सही के खुदे ताप ,क इल जे सभके शीतल ।।
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                    2
हरदम अवगुण ही लखल ,ह अवगुणी पहिचान ।
गुण चुनी ले ले सभसे ,ज्ञानी  उहे  महान ।।
ज्ञानी उहे  महान ,सभी के मान करेला ।
टारे बदे अन्हार ,दिया बन जरत रहेला ।
कह बाबू कविराय ,हरत गरीब दुखिया गम ।
सच सेवा सुख देइ ,बढ़त आगे ही हरदम ।।
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                     3
भूल से भी न हो कबो ,बाउर में प इसार ।
कुछ उ मती ली केहु से ,बढ़ते जाई भार ।।
बढ़ते जाई भार ,देव बनी देइ सभके ।
छुट जाइ संसार ,सोच कुछू रहे तबके ।
कह बाबू कविराय ,लगल रही हरि मूल से ।
समय बहुत बलवान ,समय ना चुके भूल से ।।
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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ ,विजयीपुर ,गोपालगंज (बिहार )
मो0नं0-9572105032
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