बाढ़ एक दैत्य।

बदलाव मंच 

बाढ़ एक दैत्य।।
अरे मंटू आराम से उधर से देख उस तरफ से चल। माँ ने मंटू से कहा,तो मंटू बोला, माँ आप परेशान ना हो। अरे देखकर बेटा पानी का बहाव बहुत ज्यादा है। सच में माँ पानी तो बहा जा रहा है। देखो माँ तुम भी आराम से आओ देखो मैं तो अकेला हु किन्तु तुम्हारे हाथों में मुन्नी है। उसे बचा कर लाना।
तभी माँ ने देखा कि एक बर्तन बहा चला आ रहा है। माँ ने कहा कि मैं सोचती हूँ कि मुन्नी को इस बर्तन में लेकर सर पर डाल दू। माँ ने उस बर्तन में मुन्नी को रखकर सर पर रख लिया। माँ देखना मुन्नी ना गिर जाए बहुत रो रही है। माँ पापा दादा जी और दादीजी तीनो ही नही दिख रहे मुझे डर लग रहा है। कही वो भी ना बह गए हो। मंटू बोला। बेटा तेरे पापा पे मुझे बिस्वास है वो बच जाऐंगे। वो तो मछुआरों के साथ रहे है। मंटू ने एक पत्थर पर पैर जैसे दिया। पत्थर पे से पैर फिसल गया। किन्तु वो बास आ रहा था जो बहते हुए अचानक मंटू के हाथ में आ गया। मंटू को ठीक देखकर माँ के जान में जान आई माँ बोली बेटा मंटू इस हालात में तुम दोनों ही मेरे सहारे हो। अभी तुम्हारे दादाजी,पापा किसी का पता नही है कहाँ है वह रोते हुए बोली। बेटा आराम से चलो। माँ और कितने दूर जाना है। मुझे तो केवल पानी पानी दिख रहा है। बेटा ये आफत सभी के लिए आया है। तू बिल्कुल परेशान मत हो। जो ऊपर वाला ये आफत लाया है वही सही करेगा। तू परेशान बिल्कुल मत हो सब ठीक हो जाएगा। बस हम किसी ऊँचे स्थान पर पहुँच जाए तो समझो जी जाएंगे।
माँ के आँखों से आशु भी बह रहे थे किंतु वह आज साहस का परिचय दे रही थी। क्योकि आज जिस तरह से उसके घर परिवार एक पल में छीन गया उसके बाबजूद बच्चे को बचाते हुए संघर्ष कर रही थी। खैर वही नही ऐसे बीस लाख परिवार जो घर से बेघर हो गए करीब हजारो लोग पानी के तेज बहाव में बह गये। उन्ही में से एक था मंटू का परिवार जो बिखड़ गया। मंटू एक दस वर्ष का साँवला लड़का जो ना तो ज्यादा दुबला पतला था,ना ज्यादा मोटा। मंटू की माता जी लंबी कद की थी किन्तु गाँव में घर के साथ खेतो में भी काम करती थी।
पिता सत्यानन्द भी बड़े मेहनती थे साथ में दादाजी मनोज कांत के क्या कहने वो तो केवल तारी में धुत रहते थे। जबसे उनकी पत्नी लीलावती का देहांत हुआ। उस समय से  वह शराब पीने लगे किन्तु शराब बन्द कर दिया गया सरकार के द्वारा तो शराबबंदी के बाद तो वो तारी भर भर लोटा पीते। अब क्या था
आज से ही कुछ दिन पहले गाँव में बाढ़ आ गया। हर घर घर में पानी पानी केवल पानी। सत्यानन्द ने कहा पिता जी घर छोड़ कर चल दे तो अच्छा है। हर घर में पानी भर गया है। आप बताओ क्या करे।मनोज कांत ने कहा देखो मुझे आशा
है कि दो तीन दिन में पानी कम हो जायेगा शर्त एक बार बारिश होना बन्द हो जाये नही तो तुम लोग चले जाओ मैं नही जा सकता मेरे लिए ये मात्र घर नही एक संसार है। इसमें मेरे माँ पिता दादा व मेरी पत्नी,तुम्हारी माँ की यादे बसी हुई है।
सत्यानन्द ने देखा पत्नी घुटने तक के पानी में खड़ी होकर एक थाली में भात व नमक तेल सान कर खिला रही थी। किसी की नजर पड़े तो आंखों में आशु ना थमे। खेर उसी रात में पानी का स्तर इतना बढ़ गया की रात में एक घण्टे में करीब दर्जनों घर गिरते चले गए। उसी रात अचानक सत्यानंद ने पिता को जबरन लेकर पत्नी व बच्चों के संग घर से निकल गए तभी दादाजी लड़खड़ाते हुए पानी के बहाव में बह निकले जिसे देखकर सत्यानन्द ने पिता को बचाने के लिए उसी दिशा में तैरने लगा व कुछ ही सेकेंड में वह भी गायब हो गया। पीछे मंटू की माँ एक बहन व स्वयं रह गया। अंधेरा होने के कारण कुछ समझ नही आ रहा था। तो तीनों जैसे तैसे ख़ुदको बचाते हुए आगे बढ़ने लगे। गरीबी के कारण गाँव में ज़्यादातर फूंस के घर थे। तीनो लोगो के भीड़ के पीछे पीछे चलने लगे। फिर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे सुबह होते होते सैकडों लोगो को पानी के बहाव में बहते देखा। अपना दर्द था ही ऊपर से गाँव वाले का दर्द क्या करे कुछ समझ नही आया। आज प्रशासन की ओर से कुछ नाव लगाए गए है किंतु वो तो मानो ऊँट के मुँह में जीरा। फिर तो चारो ओर केवल पानी पानी दिखाई दे रहा था। क्या करे किन्तु मंटू छोटा था किंतु समझदार था।
तीनो बचते बचाते हुए आखिरकार वो लोग ऊँचे स्थान पर पहुँच गए, मुन्नी को टोकड़ी से उतार कर माँ ने उसे छाती से लगा रोने लगी। मंटू ने पूछा क्या हुआ माँ। कुछ नही मुन्नी को बुखार हो गया है क्या करे अब यहाँ कहा डॉक्टर मिलेगा। मंटू बोला माँ आप परेशान ना हो मैं हु ना अब पता लगता हूँ वह आसपास के लोगो से मदद मांगने लगा सब तरफ केवल चीख पुकार कौन सुनता तभी एक नाव आकर रुका उसमें सैनिक पुलिस वाले थे। व एक सफेद पोसाक में एक व्यक्ति भी था। वह बोला बेटा नाव में आजा,पानी का स्तर बढ़ रहा है। मंटू बोला चाचा मेरी बहन को बहुत तेज बुखार है माँ रो रही है आप हमारी मदद करेंगे।भगवान आपकी मदद करेगा। उस नाव के लोगो ने कहा हम तो आप लोगो की मदद के लिए ही आये है। उसने मंटू को बैठा लिया नाव में झट से व उसके माँ के पास ले गए। डॉक्टर ने मंटू  के बहन को दवाई दिया।
नाव में बैठा लिया व चल दिये। तीनो को केम्प में छोड़ दिया। जहां मंटू व उसके माँ व बहन को शरण मिला। मंटू तय कर लिया कि व बड़ा होकर ऐसी शिक्षा लेगा जिससे वह भी बढ़ चढ़ कर लोगों की मदद कर सके ऐसे पीड़ितों की भविष्य में ।
मदद कर सके। वहां से वह पानी के खत्म होने पर दिल्ली आ गया। उसकी माँ लेबर का काम करने लगी,व दिल्ली में किराए पर घर ले लिया। माँ तो सदमे में मर ही गई होती किन्तु बिचारी
बच्चों के लिए समय से मिले दर्द का जहर पीकर रह गई। मंटू की माँ आज भी गरीबो की मदद करती है।अब मंटू डाक्टर बन चुका है। व किसी भी आपदा में वह लोगो की मदद करता है। उसकी बहन आज आई एस बन चुकी है। आज भी माँ सोचती है सिंदूर का मांग जिंदा है या नही। अभी भी वैसे ही सुहागिन बनकर रहती है।आज उसके पास कोई कमी नही किन्तु पति व  परिवार का दर्द कम नही हुआ है।

स्वरचित लघु कथा
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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