बदलाव साहित्य मंच
दिनांक--17-07-2020
दिन- शुक्रवार
शीर्षक - बाबुजी
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संघर्षों से जूझते हुए,
बाबुजी को देखा हरपल।
कंटक भरी राह पर भी वो,
चलते रहे सदा अविचल।
जन्म मिला माता को खोया,
माँ की गोद बनीं ननिहाल।
वहीं पढे और वहीं वो बढे,
शिक्षा पा बदला सब हाल।
समता पाने के लिए अड़ा,
अकेला चला सिंह की चाल।
सामंती बंधन को तोड़ा,
स्वाभिमान की लेकर ढाल।
समाज सुधार के लिए लड़ा,
नहिं चलने दि ढोल कि पोल।
सामाजिक बुराइयों को छोड़ा,
कुरीतियों का बंधन खोल।
निडर होकर घर को छ़ोडा,
शिक्षण क्षेत्र से करके मेल।
शिक्षा से बच्चों को जोड़ा,
पहचाना शिक्षा का मोल।
लालच से नाता ना जोड़ा,
खर्चा पैसा दिल को खोल।
पंचायत में ऐसा जकड़ा,
करके घर का डब्बा गोल।
बेचे गन्ने कभी बेचा कपड़ा
खेती का भी खेला खेल।
पुरुषार्थ को कभी ना छोड़ा,
नियति ने खेले कइ खेल।
स्वाभिमान कभी ना छोड़ा,
नहीं झुका सका अरिदल,
निडरता की छाप को छोड़ा,
रख हिम्मत जीया हरपल।
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नाम-रमेश चंद्र भाट
पता-टाईप-4/61-सी, अणुआशा, रावतभाटा।
मो.9413356728
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