माथे की बिंदी है हिन्दी, भारत माँ की शान

" हिन्दी भाषा "
माथे की विन्दी है हिन्दी, भारत माँ की शान ।
देश के बसते इसमें प्रान ।।

वैदिक वाड्यमय की वातिन ,वैभवमय साहित्य की ये नातिन ।
अवधी व्रज बुन्देली  बहिना, सबरे रस की खान ।।........१.

गाथा वीर काल का सासो , जामे रचे गये थे रासो ।
जगनिक और परमाल भाल का,यह है पवित्र निशान ।.......२

मीरा सूर का यह है गायन , इसमें तुलसी रची रामायन ।
पंचमेल कबिरा की खिचडी , है साखि शबद प्रमान ।.......३

पंत निराला और मधुशाला , छंद शास्त्र मणियों की माला ।
गुप्त सुप्त साहित्य धरा का , यह ही कवियों का गान ।........४

आजादी के  जो दीवाने ,  इसमे ही थे उनके गाने ।
जय हिन्द जय वंदे मातरम् , का था कितना सम्मान ।...........५

राजेश तिवारी "मक्खन"
झांसी उ.प्र.

मेरे यह रचना" हिन्दी भाषा " पूर्णत: मौलिक  स्वरचित है । किसी प्रकार के विवाद का उत्तर दायित्व मेरा है ।

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