रहो किन्नर बन के* या खड़े हो तन के,

रहो किन्नर बन के* 
या खड़े हो तन के,* 
अपने फैसलों से* 
बदलो मायने जीवन के..*

 असमंजस में जो जीता है*
हर पल लहू का घूंट पीटा है..* 
उसकी ही है असली ज़िंदगी,*
जो अपने ज़ख्म खुद सीता है..*
 
ज्ञान का कभी गीता बन के* 
राम की  कभी सीता बन के*
रचो इतिहास खामोश करो उपहास,*  
लोभ मिटे सत्ता-धन के...*
मौलिक.. दीपक क्रांति.... 
क्रमशः

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