इसे जगाओकब तक यहां सबको ये कुछ लुटेरा लुटते जाए.....आत्मा को मारकर ये कब तक सब देखते जाए.....

इसे जगाओ

कब तक यहां सबको ये कुछ लुटेरा लुटते जाए.....
आत्मा को मारकर ये कब तक सब देखते जाए.....
कोई साजिश करो ऐसा की इसके जमीर जाग जाए.....
कोई तरकीब करो कि अपने हक के लिए आगे आए....
इसको हकीकत बता दो कि ये भी वाकिफ हो जाए.....
ठंडी पड़ी इसकी खून अपने हक के लिए खौल जाए....
इतिहास बता दो की अब सबकी आंखे खुल जाए......
दूसरों के भरोसे पाने कि आस में कहीं मर ना जाए......
कोई साजिश गढ़ो इसकी आत्मा, शरीर जग जाए.......
इंकलाब की हुनक भरो की इसमें हिम्मत आ जाए.....
पुरानी चीख सुना दो इसकी आवाज़ बुलंद हो जाए.....
खामोशी की परिणाम बता दो इसे भी पता चल जाए...
परिणाम को जानकर शायद इसकी जमीर जाग जाए...
कब तक ये  मूरत बनकर इस तरह सब देखते जाए......
चलो अब इन सबकी आत्मा और जमीर को जगाए.....
©रूपक

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