कविता

बदलाव मंच के लिए
शीर्षक - 🇮🇳भारत भूमि 🇮🇳
व्याकुल धरा गगन है आओ प्रभु का ध्यान करें
जिस माटी मे रचे बसे,उस मातृभूमि का गान करें
मेरे देश का कण कण जय हैअभिराम
हर शरीर मे अयोध्या बसती
हर सांसों मे सीता रहती
रोम रोम मे बसते राम
मेरे परकोटे मे मथुरा की हसती
मन है वृनदावन ख्यालों में राधा रमती
कान वने है गोकुल जहां निशि दिन बंशी वजती
हर प्राणी नाचे ऐसे हृदय वसे हों शयाम
मेरे देश का कण कण है अभिराम
उत्तर के उतुग शिखर पर है शिव का धाम 
हरि ने बसाया द्क्षिण में रामेश्वर धाम
पूरब मे गंगासागर लहराता 
आरोग्य प्रदाता वैद्मनाथ धाम
पश्चिम मे पग पग पर कृष्ण की छाया
गौरव ऐश्वर्य के पृतीक सोमनाथ की माया 
मेरे देश का कण कण है अभिराम
इसी लिये भारत मे श्री हरि पृकटते है अविराम
कभी बन कर राम कभी घनशयाम
मेरे देश का कण कण है अभिराम

     चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
         अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र" घोषणा करता हूं कि उपरोक्त कविता मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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