दान का परिणाम

दान का परिणाम

एक समय की बात है एक राज्य में राजा रहता था उसके राज्य में सभी बहुत परेशान रहते थे क्योंकि राजा राज कोष में अधिक से अधिक कर जमा करते थे किंतु राजा राज कोष का बहुत कम से कम भाग अपने राज्य में खर्च करता था जिस कारण सभी राजा से दुखी रहते थे।एक बार एक ब्राह्मण दान लेने के लिए राजा के राज्य में आया तो किसी ने उससे कौतूहल वश उसे मजाक में कहा कि हे ब्राह्मण श्रेष्ठ क्यों न आप राजा के पास दान के लिए जाते हो।इतना धन मिलेगा की आप पूरे उम्र धन  खर्च नही कर पायेंगे। ब्राह्मण उसकी बात मान कर राज दरबार में 
चला गया और पुकारने लगा राजा की जय हो महाराज की जय हो।
राजा ब्राह्मण की बात सुनकर पूछा हे ब्राह्मण देवता आपको क्या सहायता चाहिए बताये। राजा की बात सुनने के पश्चात बोला। हे राजन मैं बहुत गरीब हूँ।मेरे पास इतना भी धन नही है कि मैं दो वक्त की भोजन खा सकू। अतः कृपा करके आप मेरी मदद करे। आपकी बहुत कृपा होगी। राजा के समक्ष ब्राह्मण के  कहने पर राजा के सीने पे मानो 
साँप लौटने लगा किन्तु उसने सोचा यह अलग राज्य से आया हुआ है। यदि कुछ नही दिया तो दूसरे राज्य में काफी बदनामी होगी।ये सोचकर राजा ने ब्राह्मण को बुलाया व अकेले कक्ष में जाकर ब्राह्मण को बोला आपका कितना धन चाहिये। ब्राह्मण बोला महाराज मुझे उतना धन चाहिए जितना कि आप दे सके। राजा सोचने लगा पहले सोने से भरी थाल मंगवाया फिर राजा सोचने लगा। फिर करते करते राजा अंत में राजा ने चार मटर के दाने  दिए व बोला,हे ब्राह्मण श्रेष्ठ अभी मेरे राज्य में कर घाटा बहुत ज्यादा है जिस कारण मैं आपको केवल ये ही दे सकता हूँ। ब्राह्मण समझ गया कि ये तो उससे भी ज्यादा कंगाल है किंतु कुछ ना बोला और मुस्कुराते हुए चला गया। कुछ दिनों बाद मगध के राज के पास से राजा के लिए न्योता आया। राजा जब गया तो भोजन में सभी राजाओं को अच्छे अच्छे पकवान मिल रहा था किंतु जब उसके भोजन में केवल चार मटर के दाने आये तो राजा क्रोधित होकर राजा से बोला महाराज तुमने मेरा अपमान किया है। तुम्हे यदि इस तरह मेरा निरादर करना था तो मुझे भोजन का न्योता क्यों दिया।
गुस्से से आगबबूला होकर चलने लगा तभी मगध का राजा बोला हे राजन क्षमा करें मैं आपको उतना ही दान दे सकता हूँ जितना अपने किसी ब्राह्मण को दान दिया। राजा पूरा वाक्या राज्य समझ गया।
राजा ने तुरंत हाथ जोड़कर प्रणाम करके बोला मुझे महाराज मैं समझ गया आप मेरा आँख खोलने के लिए आपने मेरे साथ किया है। मैं आपका सदा आभारी रहूँगा। उस दिन से राजा हर नागरिक को ज्यादा से ज्यादा मदद करता व सभी राजा का वंदन करते नही थकते। राज्य का हर वर्ग अब खुश रहने लगा।

शिक्षा: 1.दान देते समय ध्यान रखे जो दोगे वही आपको वापस मिलता है। 
2. कभी भी अपने सेवको व अपने शरणागत आये का निरादर नही करना चाहिये।

प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
9560205841



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