विजयी मुस्कान के साथ आगे बढ़ता गया,

लघुकथा 

   विजयी मुस्कान
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     एक बार कि बात है कि किसी नामी फार्मा कम्पनी में काम करने वाला अजय पैदल हीँ मोबाइल से बात करता हुआ निकट के प्राइवेट क्लिनिक में जा रहा था तभी सामने से आ रहे एक गदहा से वह अचानक टकरा गया। अजय गिरते गिरते बचा और गदहा को देखकर कहा कि ये जानवर भी  बिना मतलब के रोड पर चले आते हैं और इंसान को  परेशान करते हैं।
     अजय की यह बात गदहा को बहुत बुरी लगी। गदहा मन हीं मन सोचने लगा कि यह इंसान भी गजब होता है अपने अहंकार में हम जानवरों को कुछ नहीं समझता है विशेषकर हम जैसे  गदहा को।
    कुछ हीं देर बाद अजय प्राइवेट क्लिनिक के डॉक्टर साहब से मिलकर वापस लौट हीं रहा कि अजय को फिर से वहीं गदहा सामने से आता हुआ दिखाई दिया।
    अजय जैसे हीं गदहा के समीप आया कि गदहा ने  अपना शरीर जोर से झटक दिया जिस कारण उसके शरीर कि सारी गन्दगी अजय के सफेद शर्ट व चेहरे पर जा गिरी, जिस कारण अजय का सफेद शर्ट व चेहरा देखते हीं बन रहा था।
   इधर गदहा विजयी मुस्कान के साथ आगे बढ़ता गया,मानो वह कह रहा हो कि मैनें अपने अपमान का बदला ले लिया।
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      अरविन्द अकेला

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