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राज धर्म समाज नेताओं संगठित होकर कदम बढा़ओ ।
करो चिकित्सा तन मन धन से राष्ट्रीय रोगों से देश बचाओ।
पदलिप्सा, असत्य, परिग्रह, चमचावाद ,
भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, कदाचार जातिवाद ,
शोषण ,दुराचार ,दमनभाषा प्रान्तवाद,
लूट, खसोट ,अपहरण अनैतिकता रुढि़वाद,
रागव्देष, पक्षपात, प्रवंचना भेदभाव,
गुंड गर्दी,चरित्रपतन,दुराग्रह,दुराव,
घूसरिश्वत, दहेजप्रथा, अन्याय, अलगाव,
कथनीकरनी में अन्तर, निर्णयशक्ति का अभाव,
दुरव्यहार,नशेबाजी ,मिलावट प्रतिशोध,
कुपप्रथाएं, धर्मान्धता, षड़यन्त्र काम क्रोध,
,मानवता काअवमूल्यन, आर्थिक अपव्य ,
प्रदुषण, वैमनस्य, अनावश्यक संचय,
योग्यताप्रतिभा का अनादर शिक्षा वैषम्य,
चुनावी भ्रष्टता श्रम बुध्दि का असमंजस्य,
बचो बचाओ इन रोगों से "बाबूराम कवि "जागो जगाओ।
करो चिकित्सा तन मन धन से राष्ट्रीय रोगों से देश बचाओ।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम-खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन-841508
मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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