🌹पर्वत सी मेरी पीडा़ है 🌹
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पतितों को जो पावन करता, सत्य नाम उसी का गाता हूँ।
पर्वत सी मेरी पीडा़ है, लिखने में भी सकुचाता हूँ।
अपना ही कोइ स्वार्थ वस, भारत का लाज लुटाता है।
माँ, बहु -बेटी की इज्जत को जब शर्मसार कर जाता है।
सुख -शान्ति में आगे बढ़कर नाहक ही आग लगाता है।
मानवता का मर्दन करता तब मन पीड़ित हो जाता है।
दिन -रैन मिले सुख -चैन कहाँ मन से बोझिल हो जाता हुँ।
पर्वत सी मेरी पीडा़ है, लिखने में भी सकुचाता हूँ।।
अबला -अनाथ, दीन -दुखियों को जब कोई तड़फाता है।
सत्य सज्जन सत्कर्म सुचि का दुर्जन उपहास उडा़ता है।
न्याय नीति ,नेक नियत में जब बद विकर्म को लाता है।
छीना -झपटी कर पर का जब धन दुसरा ले जाता है।
नर खेल मेल लखकर अगाध लिखने भी शर्माता हूँ।
पर्वत सी मेरीपीडा़ है लिखने में भी सकुचाता हूँ।
बिन अनुशासन उदंड बनी चहुँदिशि नाहक विचरता है।
सरस सुधा को छोड़ सदा विष की ही गागर भरता है।
मानव होकर कुछ करने में सकुचाता है ना ड़रता है।
पर पीड़ा ही मेरी पीडा़ है मन बिच सदा अखरता है।
लख कलि छबि "बाबूराम कवि "पर दुख से दुखी हो जाता हूँ।
पर्वत सी मेरी पीड़ा है लिखने में भी सकुचाता हूँ।।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508
मो0नं0-9572105032
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Badlavmanch
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