शराब

शराब

    शराब है महफ़िल की शान
बनती इस से महफ़िल की जान
यह है शराबी की पहचान
नशे मे हो जाए ज्ञानी और गुणवान

 क्या गरीब क्या अमीर
बहुधा हैं इस के गुलाम
 पी कर समझे अपने को गुलफाम
सदा होवें इस के गुलाम
   
  बीवी बच्चों को भूला कर 
छिड़के सदा शराब पे जान 
नशे के आलम मेअपने आप को समझे बेसूरा तानसेन 
छेड़े  गीत की वेसूरी  तान
   
  शराब के मद में बनता शेर
बीवी के सामने हो जाता  ढेर
 
  नशे के आलम में झूमता रहता
गमों को हल्का करता रहता
कभी हंसता वो रोता रहता
अपनी धुन में रमता रहता

   पल भर की खुशी के लिए घर है,अपना वो जलाता
पूरे घर को सूली चढ़ाता
 नशे में अनाप-शनाप बकता जाता 
होश आने पर सूफी हो जाता

 नशे में समझे खुद को साहिर
ढूंढता रहता है वो साहिल
पी कर बन जाता वो जाहिल
इस से कुछ नहीं होगा हासिल

                                 अशोक शर्मा वशिष्ठ

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