घरों का ना ठिकाना है



!!घरों का ना ठिकाना है !!
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अमीरों की गली सूनी ,
फिज़ाओं में रुकावट है ।
कर्म करते नहीं कुछ भी ,
फिर भी थकावट है ।।
विनय और धैर्यवानौं में भी ,
आहट हड़वड़ाहट की ।
करें परिहास ,दिखें कुछ खास , 
सचमुच ही दिखावट है ।।
किसी को सब लुटा देते ,
बेशक शिकायत हो ।
तत्व का भान हो जाए ,
केवल मुस्कराहट हो ।।
कर्म करते रहो निश्वार्थ ,
भले परिणाम ना भाये ।
अंधेरा हो भला कितना ?
रोशन सजा- वट हो ।।
सजे परिधान बहुरंगी ,
नहीं खुशियों का बाना है ।
इमारत हैं बहुत ऊँची ,
घरों का ना ठिकाना है ।।
दृश्य अद्रश्य बहुरंगी ,
हालात-ए गरीबों के ।
कहीं भंडार घर बिकते ,
कहीं मिलता ना दाना है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)


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