सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के

सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के
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कृष्ण सुखधाम नाम परम पुनीत पावन ,
पतित उध्दार में भी प्यार दिखलाय के ।
कर की मुरलिया से मोहे त्रिलोक जब ,
सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के  ।
चौदह  भुवन  ब्रह्मांण्ड  त्रिलोक सारा ,
पालन  संहार  सृष्टि  छन  में रचाय के ।
कलिमल त्रास से उदास आज जन-जन ,
वेंणु  स्वर  फूंक  फिर भारत में आय के ।

ललाटे तिलक भाल गीता में सुन्दर माल ,
अधरन  पर  प्रेम सर मुरली सहाय के ।
आँख  रतनारे केश  घुंघर के लट सोहे ,
मोहे देव किन्नर नाग छवि छांव पाय के ।
खलहारी कारी कृष्ण खेल यशोदा के गोद ,
ब्रज को  बचायो  नख  पर्वत उठाय के ।
सखियन के रोम-रोम बसत बिहारी ब्रज ,
सार  रस  सुधा  अतुलित  वर्षाय के।

बन्धन  छुडा़इ  बसुदेव  देवकी के जेल ,
कुब्जा को काया दीन्ही बांसुरी बजाय के ।
गीता उपदेश भेष  सारथी बनाइ आपन ,
अर्जुन को दीन्हो हरि  शिष्य सदपाय के ।
पांव  में  पैजनी  पीताम्बरी  बदन हरि ,
चारों फल राखे  करतल में  छुपाय के ।
शेष  महेश  सुरेश और  सरस्वती संत ,
पार नाही पावे कोई रूप  गुण गाय के ।

कण-कण में वास कर हर अघ हर -हर के ,
सारा  जग  रहे  लौ  तोही से लगाय के ।
भाव में विभोर प्रेम नेम  तार  नर्की के ,
होत ना विलम्ब नाथ नंगे  पांव धाय के ।
होत ना बखान बलिहारी जाऊँ बार-बार ,
हारे शत  कोटि  काम रूप से लजाय के ।
बस  वही  रूप  हरि हृदय में बास करे ,बड
कहे "बाबूराम  कवि  "शीश  पद नाय के ।

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बाबूराम सिंह कवि
गोपालगंज बिहार

Badlavmanch

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