शोषण अलाव आज भी जलते हैं गांव में।।

ग़ज़ल,,,,
शोषण अलाव आज भी जलते हैं गांव में।।

मजदूर मोम जैसे पिघलते हैं गांव में।।

बूढों को कभी वक्त पर मिलती नहीं दवा,
बच्चों के पेट भूख से जलते हैं गांव में,।।

कानून यूं हवेली के चलते हैं गांव पर,
कुछ लोग नंगे पैर निकलते हैं गांव में।।

पानी भी कुछ कुओं से है भरने पै
बंदिशें,
कुछ ऐसे भेदभाव भी पलते हैं
गांव में।।

आंखों में ग़रीबों की, उमड़ते हैं
पीर मेघ,
मौसम भी इस मिजा़ज से ढलते हैं
गांव में।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525
20/7/2020
मुंशी प्रेमचंद महोत्सव हेतु

Badlavmanch

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ