शिवरात्रि की प्रार्थना
हे ! शिव शंकर, हे ! शिव शंभू,
आज फिर युद्ध छिड़ा है,
मानवता -दानवता में,
कौन करेगा सागर मंथन?
शांत करें कैसे दावानल ?
जागो हे शिव -शंकर जागो ।।
वृद्ध जगत ,जर्जर समाज,
रूढीं ग्रस्त है मानव आज,
कौन सुनाएं भैरव- राग ?
कौन करें क्रांति तांडव की ?
पधारो हे! आशुतोष पधारो।।
दानवता उंमुक्त हुई है,
पशुता को लगाम नहीं है,
सशक्त व्याभाचारी,
लौलुप भ्रष्टाचारी,
कौन करे हलाहल पान?
कहां हो प्रलयंकर पधारो?
संस्कृति रो रही, करुणा विधवा हुई,
सत्ता के सिंहासन में,मोह माया आसीन,
शोषित निर्बलों का चीत्कार,
रुदन से कांपती, वसुधा बेचारी,
कौन बचाएं महाकाल?
अनहद नाद सर्वेश्वर सुनाओ, पधारो।।
अस्थियों से भूमि मरुस्थली है,
जागो! जीवन सुरसरि जटा जूट से बहा दो,
हे ! सत्यम, शिवम, सुंदरम, पधारो,
शव बनी मनुष्यता,
कौन फुंकेगा प्राण,
पधारो हे प्राणनाथ पधारो।।
स्वरचित अंशु प्रिया अग्रवाल
सर्व मौलिक अधिकार सुरक्षित
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