दोस्तों के चेहरे विचित्र से





दोस्तों केचेहरे विचित्र से 
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छूटा है साथ मेरा ,
मेरे ही मित्र से ।
अब याद कर रहा ,
ख़्वाबों के चित्र से ।।
हर राह चलूंगा कहा ,
उसने इस कदर ।
आया था नहाकर ,
वायदों के इत्र से ।।
कहते थे कटेगा ,
सफ़र हँस-बोल कर ।
तोड़े हैं मगर प्यार से ,
धागे पवित्र से ।।
बचपन का रहा साथ ,
निभाते नहीं सदा ।
ऐसे हैं दोस्तों के ,
चेहरे विचित्र से ।।
हमको था पता देगा दग़ा ,
अक्सर कभी "अनुज "।
फिर भी लगाव था ,
मुझे ऐसे चरित्र से ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़  (उत्तर प्रदेश)

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