तू तो गुज़र गई, पर, मेरे कुछ सपने,

तू तो गुज़र गई,
पर, मेरे कुछ सपने,
बाकी रह गए।
कुछ भूल गया था,
थोड़े टूट गए थे।
थोड़ी खामोशियां भी थीं,
जो, तुझसे कुछ,
कहना चाहती थीं।
पर, तू तो बस,
यूं ही गुजर गई।
कितनी बार, आवाज लगाई मैंने,
पर तू कहां सुनती।
ख्वाहिश तो मेरी थी न,
तुझे जीने की।
पर, भरपूर जी ही नहीं पाया।
यह वाद विवाद ही रहा,
हम दोनों के बीच।
तूने क्या दिया,
और, मुझसे क्या छूट गया।
अब तक भी,
मैं इस उहा पोह में ही हूं,
कि, मैं तुझे पूरा नहीं जी पाया,
या, तू अधूरी रह गई।

अजय "आवारा"

Badlavmanch

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