कौआ बोला कोयल से यह देश छोड़कर जाता हूँ जिस घर के उपर बैठुं मै मार उडा़या जाता हूँ

[7/16, 6:25 PM] Baburam Sinh Kavi: जयति-जयति जग पावनी गंगा
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शुचि सौभाग्य शुभ लावनी गंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

जल पियूष सम अति गुणकारी।
लाई  लाज सब  मिटै  बिमारी ।
नित  मंजन  स्नान    पान  से  ।
जीवन  बन  जाता अविकारी।।

आगम  निगम  हो जाता चंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

एक  बूंद  जल से  ही  तेरे  ।
कट  जाते  माँ  नर्क  घनेरे ।
राज सर्व खुशियों का तुझमें ।
पाय  निहाल  होते  बहुतेरे ।।

माँ   तेरो  अति   सुचि  उत्संगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

दुर्गुण जन मानस से  हटाती ।
ताप - पाप अभिशाप मिटाती।।
बंधन काट लख चौरासी  का ।
जन -जन को बैकुण्ठ दिलाती।।
 
सब पातक पुंज नसावनी गंगा।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

अनायास दरस -परस हो जाता।
माँ उसका भी उत्कर्ष हो जाता ।।
नाम उच्चारण चिन्तन मनन से।
भव  निधी  मानव  तर  जाता ।।

भस्मी भूत  कर  भय  अभंगा  ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

साधु  सन्त  योगी  सन्यासी  ।
सेवत  हर  -हर  गंगे  काशी ।।
ब्रह्म कमंडल विष्णु चरण की।
हो  मईया  महा  पावन राशी।।

प्रेरित   कर   देती    सत्संगा  ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

गीता गायत्री  गंगा  गो  माता ।
शरण तिहारी जो कोई  आता।।
प्रेम  श्रध्दा  विश्वास आस  से ।
मनवांछित सब कुछ पा जाता।।

रंग माँ "बाबूराम " निज   रंगा ।
जयति-जयति जग पावनी गंगा।।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला-गोपालगंज (बिहार )
पिन-८४१५०८
मो०नं-९५७२१०५०३२
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वेवसाइड पर प्रकाशनार्थ
[7/16, 7:48 PM] Baburam Sinh Kavi: सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के
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कृष्ण सुखधाम नाम परम पुनीत पावन ,
पतित उध्दार में भी प्यार दिखलाय के ।
कर की मुरलिया से मोहे त्रिलोक जब ,
सुफल बना लो जन्म कृष्ण नाम गाय के  ।
चौदह  भुवन  ब्रह्मांण्ड  त्रिलोक सारा ,
पालन  संहार  सृष्टि  छन  में रचाय के ।
कलिमल त्रास से उदास आज जन-जन ,
वेंणु  स्वर  फूंक  फिर भारत में आय के ।

ललाटे तिलक भाल गीता में सुन्दर माल ,
अधरन  पर  प्रेम सर मुरली सहाय के ।
आँख  रतनारे केश  घुंघर के लट सोहे ,
मोहे देव किन्नर नाग छवि छांव पाय के ।
खलहारी कारी कृष्ण खेल यशोदा के गोद ,
ब्रज को  बचायो  नख  पर्वत उठाय के ।
सखियन के रोम-रोम बसत बिहारी ब्रज ,
सार  रस  सुधा  अतुलित  वर्षाय के।

बन्धन  छुडा़इ  बसुदेव  देवकी के जेल ,
कुब्जा को काया दीन्ही बांसुरी बजाय के ।
गीता उपदेश भेष  सारथी बनाइ आपन ,
अर्जुन को दीन्हो हरि  शिष्य सदपाय के ।
पांव  में  पैजनी  पीताम्बरी  बदन हरि ,
चारों फल राखे  करतल में  छुपाय के ।
शेष  महेश  सुरेश और  सरस्वती संत ,
पार नाही पावे कोई रूप  गुण गाय के ।

कण-कण में वास कर हर अघ हर -हर के ,
सारा  जग  रहे  लौ  तोही से लगाय के ।
भाव में विभोर प्रेम नेम  तार  नर्की के ,
होत ना विलम्ब नाथ नंगे  पांव धाय के ।
होत ना बखान बलिहारी जाऊँ बार-बार ,
हारे शत  कोटि  काम रूप से लजाय के ।
बस  वही  रूप  हरि हृदय में बास करे ,बड
कहे "बाबूराम  कवि  "शीश  पद नाय के ।

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[7/17, 6:14 AM] Baburam Sinh Kavi: सबक
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कौआ बोला कोयल से यह देश छोड़कर जाता हूँ 
जिस घर के उपर बैठुं मै मार उडा़या जाता हूँ 
कोयल बोली पृथ्वी तल पर जहाँ कही भी जाओगे 
कर्कश वाणी जबतक है तिरस्कार सदा ही पाओगे 
रहो यही आराम चैन से छोड़ कटु वचन का खोल 
यही आबरु सर्वोतम सत्य मधुरभभ वचन नित बोल 

कुत्ता बोला हाथी से जूठन खा जीवन बिताता हूँ ।
पर क्यों मै हाथी भैया दुत्कार सभी से पाता हूँ ।।
हाथी हँसकर कहने लगा निज ओछापन कर दूर ।
निज स्वार्थ ,छल,कपट ,भाव है तुझमें मशहूर ।
इन्हें छोड़ रह चैन से प्यारे पोंछ नयन का नीर ।
सबक यही रह सबके सुख में शान्त चित्त गम्भीर 

बगुला बोला हंस से आकर बना लो अपना मीत ।
नीर क्षीर विवेक सत्य का सिखा दो मुझको रीत ।।
कहा हंस मन कर्म कर निर्मल जब  तेवर ,तर्क हटाओगे ।
नीर क्षीर विवेक सत्य स्यवं में बगुला पा जाओगे ।
दृढ़ प्रतिज्ञ हो "बाबूराम कवि "छोड़ दो अपनी नियत बुरी ।
सबक अनुपम त्याग दे बगुला मुख में राम बगल में छुरी ।।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला -गोपालगंज (बिहार )
पिन-८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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मै बाबूराम सिंह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है ।  सादर हरि स्मरण ।
[7/17, 6:52 AM] Baburam Sinh Kavi: 🌾तुम्हारी ऐसी तैसी 🌾
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देव दुर्लभ लख चौरासी में मानव योनी महान ।
मोह व्दार उपहार सत्य भज ले श्री भगवान ।
भज ले श्री भगवान शुभ अनुपम योनी ऐसी ।
बिन हरि भजन सब  बुध्दि  तुम्हारी ऐसी तैसी ।

बिन हरि कृपा स्वांस तुम्हारा चल नही सकता।
पकड डोर सतनाम सदा  मिथ्या क्यों बकता ।
पल में परल  होय बोल  बैर तेरी  हस्ती कैसी ।
प्रभु  बिन  पलटा खाय   तुम्हारी ऐस  तैसी ।

सोये से अब जाग-जाग देरी नही करना ।
कुकर्म से भाग कुमार्ग में पग नही धरना।
सोच अन्त परिणाम करोगे  करनी जैसी  ।
नेकी  बिन  डूबे नाव  तुम्हारी  ऐसी तैसी  ।

करले पर  उपकार प्यार  सबही  से प्यारे ।
छोड़ दे जग फल आश स्वयं प्रभु रखवारे ।
सत्य सदा शरताज है इसमें दुविधा कैसी।
"बाबूराम कवि " झूठ  तुम्हारी ऐसी  तैसी ।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला-गोपालगंज ( बीहार )
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Thu, Jul 16, 2020, 7:34 AM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
[7/16, 6:30 AM] Baburam Sinh Kavi: 🌾भोजपुरी गीत 🌾
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चन्दरमा लिलार जटवा गंगा जी के धार जय हो औढ़रदानी। बसहा बयल पर असवार जय हो औढ़रदानी। 

पी के जहर जग के अमरीत दी ले झारी, 
सभका के दाता र उरा अपने भिखारी। 
एही से पूजाला राउर सगरो परिवार जय हो औढ़रदानी। 
बसहा बयल पर असवार जय हो औढ़रदानी। 

र उरा चरन में जे जे नेहिया लगावल, 
जे जवन मांगल उहे र उरा से पावल। 
खाली ना लवटल जाके र उरी दुआर जय हो औढ़रदानी। 
बसहा बयल पर असवार जय हो औढ़रदानी।। 

राम जी के अपनी हृदय में बसाइले, 
भक्त जब पुकारे नंगे पांव धाइले। 
खाली ना जाला नाथ केहू के गोहार जय हो औढ़रदानी। 
बसहा बयल पर असवार जय हो औढ़रदानी।। 

"कवि बाबूराम "माथ आपन झुकावेले, 
भासा भोजपुरी में गुन राउर गावेले। 
गमकत रहे भोजपुरीया बहार जय हो औढ़रदानी। 
,बसहा बयल पर असवार जय हो औढ़रदानी।। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) 
पिन-८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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 वेवसाइड पर छपे खातिर
[7/16, 6:34 AM] Baburam Sinh Kavi: रामायण लंका कांड से 
    भोजपुरी गीत   
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एक दिन लंका पुरी में अइसन
समय बा आइल  ।
सती सुलोजन कक्ष में सगरो 
 सखिया लोग बिटोराइल। 
रंग महल में सती सुलोजन 
सोलहो सिंगार सजा के  ।
सखियन की संग में पासा खेलत 
बाडी़ पती धरम बिसराके। 
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खेलेली सुलोचन रे पासा, तबतक ले छवलसी निराशा, 
से कटल बहियां गिरल रे तवले दुआरा की ओर हो। 
कहेली सुलोचन रे सती, लिख बहियां रत्ती हो रत्ती। 
से अइसन दुरगति रे बहियां भ इली क इसे तोर हो। 
लिखे बहियां पाई हो पाई, राम जी के छोट हो भाई। 
से कटले नट इया हो लक्षुमन रनवा में मोर हो  ।।
नागसुता हो गुडीया, फोरेली बांहन के चुडी़या ।
से बाल बिखरवली रे बहेला नैनवा  से लोऱ हो।। 
नाहीं सती देरी क इली, राम जी की लगे रे ग इली। 
से सती होखबी स इया शर मिले प्रभु मोर हो।।  
सत से शर पहिचान कर, सती जनी गुनान कर। 
से सती तोहरा सत से होइ जग में अजोर हो।  
सती पती ध्यान ल गाई, कटल शीरवा हँसल ठठाइ। 
से "बाबूराम "नैनवा से बहे लागल लोर हो।। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) 
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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छपे खातिर
[7/16, 6:37 AM] Baburam Sinh Kavi: 🌷भोजपुरी दोहे 🌷
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नीमन-बाउर बात पऽ, अगते करी बिचार। 
नीक काम हरदम करऽ, तब फइली उजियार।। 

ज्ञान, बिनय, विद्या, सुधन, बँटले से बढि़आय। 
कंजूसी ए में करे, ऊ पीछे पछताय।। 

जहाँ तलक काबू पहुँच, कर सेवा सतकार। 
सेवा से मेवा मिली,  भेंटी प्यार -दुलार।।

मन घमंड लब -लब भरल, खुद में रखल गरूर। 
अपने आदत से कबो , हो जाई मजबूर ।।

जवन करत लागे सरम, जरे जगत में आग। 
ओके बाउर जानि के, तुरते कइदऽ त्याग।।

सेवन को सतसंग भल , खेवन को  भल काम।
देवन को सेवा भला ,लेवन को हरिनाम।।

सब कुछ से खाली अगर, ए में केकर दोस ।
करनी जस भरनी मिले, अबहूँ से कर होस ।।

अपन बडा़ई जे करी, झारी सेखी सान ।
ऊ न कबो आगे बढी़ , बाउर कही जहान ।।

खुद में सतत सुधार कर, पहिले अपने सीख। 
जीव -जगत के हो भला, बात समुझ सुचि लिख।।
 
फुलत-फरत रह बिस्व में, करम करत निसकाम। 
सभ में हरि के वास बा , सद्कवि बाबूराम।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) 
मो0नं0-9572105032
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[7/16, 6:51 AM] Baburam Sinh Kavi: 🌾भोजपुरी गीत 🌾
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जे बोलेला ओकर जिनगी संवरी जाला। 
मिठ बोली सभका दिल में उतरी जाला। 

हरदम रहेला जे सांच में समाई के 
लुर आ सहुर से निक बोली सजाई के। 
निक लागे भाव व्देष दम्भ जरी जाला। 
मिठ बोली सभका दिल में उतरी जाला।।

झूठ निन्दा कटु से जे राखे परहेज हो, 
जिनगी हो जाला सरग सुखवा के सेज हो। 
देह अंग -अंग खुशियन से भरी जाला। 
मिठ बोली सभका दिल में उतरी जाला।।

बोली अनमोल आपन बोली सम्हारी के, 
कुछू लिखी पढी़ कही सोचि के विचारी के। 
एही से जिनगी फूलाला औरी फरी  जाला। 
मिठ बोली सभका दिल में उतरी जाला।। 

बोली पर लगाम रही बनी सब काम हो, 
जग यश नाम होई "कवि बाबूराम "हो। 
दुख -दरद सगरो बोलिए से टरी जाला।। 
मिठ बोली सभका दिल में उतरी जाला।। 
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बाबूराम सिंह कवि 
खुटहाँ, विजयीपुर, गोपालगंज 
(बिहार) पिन -८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२९
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On Wed, Jul 8, 2020, 5:00 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
नमन बदलाव साहित्य मंच 
दिनांक -08/07/2020
विषय - प्रेम 
विधा -दोहे 
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                 दोहे

प्रेमी पागल प्रेम में ,जैसे जल बिन मीन ।
पिय मिलन में रे मना ,पल-पल हो लवलीन ।।
प्रीत -रीत में रे मना ,नाही नेम दिवार ।
प्रियतम आगे जीत ना ,लगे सुहावन हार ।।
प्रेम पिपासा रह मना ,छोड लोक -परलोक ।
लघु लागत सच प्यार में ,त्याग तपस्या योग ।।
पिया मिलन हो प्रेम सुख ,मनवा बेपरवाह ।
पाप पुण्य गुण दोष का ,कहीं न लागे थाह ।।
प्रेमातुर बिन मांग ही ,मन चाहा पा  जाय ।
विषय ना वाणी का यह , भावों में प्रगटाय ।।
प्रेम हरि बिन और कहीं ,चट अनहोनी होय ।
प्रेम डगर अति सूक्ष्म है ,जिस पर चले न दोय ।।
सर्वोपरि है प्रेम -पथ ,इसका आदि न अंत ।
सर्व सम्मत सुप्रीत से ,मिले सहज ही कंत ।।
प्रेम कटारी धार का ,प्रेम अटल विश्वास ।
प्रेम प्लावित परमात्मा ,चलत प्रेम ही स्वांस ।।
प्रेम सु उपमा प्रेम है ,परिभाषा भी प्रेम ।
अलंकार भी प्रेम का ,जान मना बस प्रेम ।।
पावन परम पुनीत है ,प्रेम प्रभु का धाम ।
प्रेम प्यासा पहुँचेगा ,सच कवि बाबूराम ।।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला-गोपालगंज (बिहार)मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 28, 2020, 8:24 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
मुक्तक
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                1
सेवा त्याग जो रहता  सत में  ।
विचलित नहीं होता आफत में ।
सर्व भला  देश  हित में तत्पर  -
मानव  वही  महान जगत   में ।
                  2
माँ चरण में तीर्थ - धाम  वसे ।
मन  चंगा  में श्रीराम    वसे  ।
जो   पीर   पराई   हर लेवे -
उसके मन राधे श्याम वसे  ।
                3
पी जहर भी अधर मुस्कात रहे ।
आपसी प्यार सहयोग साथ रहे ।
भूल से भी होजा गलती  कबो -
माफीहेतु झूकल हरदम माथ रहे ।
                 4
प्रश्न बहुत पर हल  क्या  होगा ?
छल -कपटों का फल क्या होगा ?
हरि विधान से डर  ए मानव  -
किसे  पता है  कल क्या  होगा ?
                    5
सत्य में झूफ गरल क्या  होगा  ?
मन में स्वार्थ  मल  क्या  होगा  ?
प्यार एकता त्याग  से    रिता -
शान्ति सुख अचल क्या होगा ?
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बाबूराम सिंह कवि

On Thu, Jun 25, 2020, 2:20 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय-काव्यात्मक कथा
दिनांक -25-06-2020
दिन -गुरुवार 
  विषय मुक्त ,विधा -कविता
शीर्षक-मानव जीवन कथा 
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मानव जीवन सर्वोपरि है सर्व सम्मत से ,
किसी पर कथा में यह ऊँचाई हो नही सकती ।
सुचिता सच्चाई से बडा़ कोई तप नहीं दूजा ।
सत्संग बिना मन की सफाई हो नही सकती  ।।

मानव जीवन जबतक पूरा निःस्वार्थ नही बनता ,
तबतक सही किसी की भलाई हो नही सकती  ।
परमार्थ परहितमय कदम आगे बढा़ अपना ,
सत्कर्म कर जड़ में रसाइ हो नही सकती ।

अन्दर से जाग भाग पाप दूराचार से ,
सतज्ञान बिन पुण्य की कमाई हो नही सकती ।
परमात्मा और मौत को रख याद सर्वदा ,
यह मत जान की जग से विदाई हो नही सकती ।

अज्ञान में विव्दान का अभिमान मत चढा़ ,
किसी से कभी सत की हँसाई हो नही सकती ।
बन आत्मा निर्भर होशकर आलस प्रमाद छोड़ ,
आजीवन तेरे पर से पोसाई हो नही सकती ।

काम कौल में फँसकर न कृपण बनो कभी ,
सदा दान बिन धन की धुलाई हो नही सकती ।
देव ऋषि पितृ ऋण से उऋण होना है ,
वेदज्ञान बिन इसकी भरपाई हो नही सकती ।

राष्टृ रक्षा जन सुरक्षा में सतत् निमग्न रह ,
बिन अनुभव कर्मो की पढा़ई हो नही सकती ।
शुभकर्म सत्यधर्म वेद ज्ञान के बिना ,
बाबूराम कवि तेरी बडा़ई हो नही सकती ।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुर  
जिला -गोपालगंज (बिहार )पिन-841508
मो0नं0-9572105032
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On Tue, Jun 16, 2020, 3:08 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
बदललाव मंच साहित्यिक प्रतियोगिता"सावन में लग ग ई आग " विधा -हास्य कविता 
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16जून दिन-मंगलवार
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सावन में लग ग ई आग सत्य विचलीत  हुए भोर की तलाश कर रहा है ,त्याग और राग निज स्वार्थ में उन्नती की आश कर रहा है  ।
सावन का महीना था ,रिमझीम बारीस हो रही थी कि -
एक अजीब नवजान ब्यक्ति एक रोज अचानक मेरे घर पर आया बहुत जोरो से दरवाजा खटखटाय मै कुछ लिख रहा था कुछ सिख रहा था पर छोड़कर फौरन आया दरवाजा खोला और बोला क्यों भाई क्या बात है?
उसने रुआसा आवाज मे कहा हमारी हालत देख लीजिये  सुना है आप कवि है अच्छा खासा कमा लेते है दानी सवभाव के दयालु व्यक्ति है जो मांगने आता है उसे कुछ न कुछ अवश्य देते है मेरी बातो मे कोई त्रुटि हो तो उसे माफ कीजिये साहब कम से कम मुझे एक सौ रूपये दीजिये मैंने कहा पैसा किस काम मे लगाओगे कैसे और कब तक हमारे पैसे लौटाओगे वह बड़े ही दृढ़ स्वर मे बोला साहब ! पैसा से शराब पियूँगा, मांस खाऊंगा किसी की जेब काट कर आप के पैसे किसी न किसी दिन अवश्य लौटा जाऊंगा मै कभी झूठ नहीं  बोलता, साहब सत्यवादी हूँ बुरा ना मानियेगा, माई बाप पाकिट मारी और सराब का आदि हूँ |
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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला-गोपालगंज ((बिहार )
मो0नं0-9572105032

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
*************************   
                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
*************************
                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
*************************

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