मेरी मैया का ऐसा बसेरा है


मेरी मैया का ऐसा बसेरा है 

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मिले ना धूल कहीँ,
और ना अँधेरा है ।
मेरी मैया का ,
ऐसा बसेरा है ।।
ना हो विश्वास तो ,
दर पर जाके देख तो लो  ।
माता अपनी है ;
अपना बना के ,देख तो लो ।।
उन्ही से शाम मेरी ,
उन्ही से सवेरा है ।
मेरी मैया का,
ऐसा बसेरा है ।।
जोता वाली भी वही,
शेरा वाली माता मेरी ।
लाटा वाली भी बने ,
माँ जग-विधाता मेरी ।।
नाम ले लेना कहीं ,
माँ का वहीँ डेरा है ।
मेरी मैया का ,
ऐसा बसेरा है ।।
माफ़ करती दोष ,
अपने पुत्रों का ।
देती आशीष समझ ,
मनुज सूत्रों का ।।
उसी की ढाल बने ,
सुत जो कमेरा है ।
मेरी मैया का ,
ऐसा बसेरा है ।।
एक बार श्री ,
जयकारा जय हो माता दी ।
स्वप्न संचित भी रहें,
निमित्त जय हो माता दी ।।
राह भटके ना "अनुज ",
माँ है , माँ का शेरा है ।
मेरी मैया का ,
ऐसा बसेरा है ।।
मिले ना धूल कहीँ ,
और ना अंधेरा है ।
मेरी मैया का ,
ऐसा बसेरा है ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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