सीता एक तपस्विनी।

बदलाव मंच
4/8/2020
स्वरचित रचना

सीता एक तपस्विनी।

तुलसी सरल सरस है उनका 
लेखन शैली भी अनमोल।
एक एक शब्द है लिखे ऐसे
 जैसे स्वयं राम लिखवाए हो बोल।।

अब माँ शारदा को नमन कर
 गणपति को मनाता हूँ।
आशीष बनाये रखिये हे 
अम्बे मैं सीता चरित्र सुनाता हूँ।।

राजा जनक को मिली वो उनके
 पूर्व जन्मों कर्मो के कारण।
चरित्र नारी का समझाना था विस्व को 
इसलिये लिये लिया इस
 धरा हुई स्वयं अवतरण।।

मिथिला के राजा जनक 
इसलिए मिथिलेश वो कहाये।
मिथिला में हल जोतते समय
 मिली राज भवन लेकर आये।।

बचपन से ही वह द्विय 
सुन्दर व मन से पवित्र पुनिता।
जो स्वयं में बचपन से महारथी
 नाम से कहलाई सीता।।

चित्त प्रसन्न करने वाली थी
 व उनको था सभी वेदों को ज्ञान।
अच्छे अच्छे योद्धा नमन करते उनको
 जब उठाती थी तलवार व तीर कामान।।

बचपन से खोई रहती थी नित
 दिन जैसे किसी के प्रेम में।
देखने वाले तो मन्त्र मुग्ध 
हो जाते उसके सामने इतनी तेज
 सहज व सरल थी वो स्वभाव में।।

जब हुई सीता सयानी तो राजा
 जनक ने मन में संकल्प बनाया।
उसी से होगी सीता की शादी जो 
शिव धनुष को भंग कर पाया।।

बड़े बड़े देश विदेश के यौद्धा 
आये सीता के स्वयंवर में।
 कोई ना हिला पाया तो राम
 जी के धनुष भंग से मिला 
राम सीता को रूप वर में।।

चारो ओर धूम मची व 
हुआ खूब आनन्द के शोर 
उनके विवाह में देव सन्त सभी आये
मनमोहक छवि से हुये सभी भाव विभोर।।

तब वह देवी मिथिला 
से अयोध्या राम संग आई।
माता समान सास ससुर 
व पुत्र समान देवर पाई।।

कुछ ही दिनों में मंथरा व केकयी के
 कहने पर राम के साथ वनवास गई।
जिनके लिए दासीया रहती ततपर
 वह चौदह वर्ष सन्यास जीवन बिताई।।

रावण हरण कर लेगा 
गया जिस सीता को।
कहाँ सम्भव था छूना उसके 
लिए उस प्रेम पुनिता को।।

राम के द्वारा रावण वध कर 
माँ  सीता पुनः अयोध्या आई।
कुछ दिन बिता समय पति देवर 
संग फिर वापस वन आई।।

 पति के बिना दूसरा वनवास 
तो और भी कठोर था।
पुत्र को गर्भ में लिए वन में बन तपस्वी
 उनका ये पल पूर्णतः तपस्या घोर था।।

वह सीता नारी को 
करना स्वयं सम्मान गई ।
गर्भावस्था में भी स्वयं कार्य कर 
सिद्ध आत्मनिर्भर व महान बनी।।

बाल्मीकि के आश्रम में रहकर 
उनसे पुत्री का धर्म निभाया।
लव व कुश दो बच्चों को जन्म 
देकर बाल्मीकि का शिष्य बनाया।।

मानव को संघर्ष कर जीवन  
जीने की कला सिखाई।
स्त्री की क्या मान मर्यादा है
 ये भलीभांति बतलाई।।

लव कुश को शिक्षा देकर स्वयं 
से पहचान बनाना सिखाई।
प्रकृति के साथ क्या रिश्ते है 
हमारे वह सरल रूप दिखाई।।

लव कुश के द्वारा स्वयं पे 
दाग को सदा के लिये हटा दिया।
नारी शक्ति है ना कोई अबला 
इसको सिद्ध कर समझा गई।।

जो परीक्षा दे गई उसपर 
बन्दन करता रहेगा संसार।
सीखना चाहिये आज के पुरुष
 स्त्री दोनो को उनसे
 लेकर प्रेणना व बिचार।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार

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