प्रेम# प्रकाश कुमार मधुबनी द्वारा कविता#

आँखों में आकर 
जो बस जाती तुम।
सायद फिर प्रेम को
यू ना तरस पाती तुम।।

सुंदर फूल खिलते
प्रित जो तुम लगाती।
मेरे घरवाली बनकर
घर मेरा सजाती।।

कितना प्रेम बरसता
चाहों दिशाओं से।
फिर मैं खुश होता
तुम्हारे अदाओं से।।

ऐसे ही हम मिलकर।
सभी पल काट लेते।
जीवन के सुख दुख
मिलकर बाँट लेते।।

खींचातानी ना करते।
प्रेम सदा बरसाते
आने वाले पीढ़ी हेतु
 उदाहरण बन जाते।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार

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