लिख लेता हूँ अक्शर कविताएँ,
माँ को कभी न लिख पाया।
मेरे शब्दों में वो धार नहीं,
जो दिखला दें माँ का साया।
नन्हें कदमों को चलना सिखलाये,
पाल पोस जो बड़ा करे।
आज तलक कोई बतला दे,
भगवन नहीं क्या माँ की काया।
लिख लेता हूँ अक्शर कविताएँ,
माँ को कभी न लिख पाया।
आँचल में ले जो दूध पिलाए,
ममता से जो लोरी गाए।
कौन माँ को परिभाषित करता,
कविता तुझ पर कौन बनाए।
पिता धूप दे पाल रहा था,
माता जैसे तरुवर की छाया।
लिख लेता हूँ अक्शर कविताएँ,
माँ को कभी न लिख पाया।
नौ महीने कोख में रखा,
जो था तुमको स्वर्ग समान।
खून पिया हम सबने मां का,
फिर क्यूँ ख़ुद पर अभिमान।
लिखनें की कोशिश कर डाली,
कोई शब्द न मुझको नज़र आया।
लिख लेता हूँ अक्शर कविताएँ,
माँ को कभी न लिख पाया।
शीतल छाँव सी ठंडक कह दूँ,
भाव मगर ये छोटे हैं।
शब्दों में मां को परिभाषित कर दूँ,
जो मुझको हरदम रोके हैं।
जल के रंग सा रूप है माँ का,
कभी धूप तो कभी छाया।
लिख लेता हूँ अक्शर कविताएँ,
माँ को कभी न लिख पाया।
अनुराग बाजपेई(प्रेम)
पुत्र स्व०श्री अमरेश बाजपेई
एवं स्व०श्री मृदुला बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२
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