चलो जंगल की ओर चलते
थोड़े जंगली हो जाते है।
बहुत दिखावटी हो गए है
चलो अब वापसी कर जाते है।।
फिरसे चहो दिशाओं में यू
मिलकर फुलवारी लगाते है।
चलो फिरसे मिलकर यू ही
प्रकृति के संग हो जाते है।।
क्यों ना चारो और नदियों
तलाबों को हम भरने दे।
प्रकृति को काम करने दे।
साथ में उसी के संग हो जाते है।।
फिरसे मिल के तरह- तरह
के पुष्प व फल लगाकर।
प्रकृति के काम को आसान बनाकर।
उसके कार्य में हम भी हाथ बटाते है।।
अपने बच्चों में ऐसे भाव जगा के।
उनको भी इसके महत्व बता के।।
चलो ना मिलकर एक क्रांति लाते है।
ऐसा अनमोल कार्य कर जाते है।।
ये माता सखा बनके पालती।
ना कभी अपना बोझ हमपे डालती।
जो हुआ सो हुआ अब लौट आते है।
चलो फिरसे जंगल की ओर जाते है।।
प्रकाश कुमार
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