वाह रे बृक्ष# प्रकाश कुमार मधुबनी, के द्वारा स्वरचित रचना#

वाह रे बृक्ष
स्वरचित रचना

वाह है रे बृक्ष कैसे कर पाते हो।
स्वयं को भूल दूसरों हेतु जी जाते हो।।

हम तो मानव होकर जानवर है।
तूम मौन होकर भी कितना
 पुण्य का काम कर जाते हो।

हम तो केवल काटते है तुमको।
 फैशन के लिए बाँटते है तुमको।।

 एक तुम हो इतने सरल की दूसरों के       
 जन्म-मरण तक में काम आते हो।।

भला आज तक क्या दिया है तुमको।
हम होशियार और ज्ञानी इंसानो ने।
कुछ भी नही किया हम शैतानो ने।।

सच में तुम तो देवो के जैसे उदार हो।
 चेतना जैसे संतो के जैसे लिए व्यवहार हो।।
 तुम इतने शांत होकर कैसे सह जाते हो।

हमने तो केवल तुमसे लिया ही है।
तुमने जानकर अपना दिया ही है।।
 यही फर्क है इसी सुख में तुम स्थिर           
  होकर भी सुकून से रह पाते हो।।

तुम ना हो तो हमारा काम कैसे बनेगा।
हमारे जैसा अकड़ू सांस कैसे लेगा।।

तुम जानते हो ये सब  अच्छी तरह।
 फिरभी अबोध मान कुछ नही कह पाते हो।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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