अंतरराष्ट्रीय कवि निशांत वैद्य "निश" जी द्वारा 'लोग समझते नहीं' विषय पर रचना



लोग नहीं समझते

लोग नहीं समझते
दुःख क्या होता है,
क्युकी उनको कुछ नहीं हुआ,
इसलिए मस्ती में उड़ा देते हैं|

कभी सैनिक का दुःख समझे हो?
कभी गरीबों का दुःख?
कभी पैसा न होने का?
कभी बिना वजह मर जाने का?

मैं सत्य का कवि हूँ,
देखना जब तुम पर बात आएगी,
तब मालुम पड़ेगा,
तब तक लोग नहीं समझेन्गे|

सुशांत केे परिवार ने,
उनका बेटा खोया है,
अगर आप उनके लिए नही लड़ सकते,
तोह कम से कम चुप रहो|

आपको कौन जानता है?
हम कब हवा में उड़ जाएंगे,
पता नहीं चलेगा,
इसलिए अभी मौका है समझने का|

वोह वक़्त दूर नहीं,
जब हादसा तुम्हारे साथ हो,
तुम्हारे फेन्स कहाँ है?
कौन इतना करेगा तुम्हारे लिए?

कभी सोचा है इस बात का?
या तुम्हे अब भी मज़ाक लग रहा है?
तुम वोह बन्दे का दुःख भी क्या समझोगे,
तुम उसकी जगह थोड़ी थे|

अरे खुद को उसकी जगह रख कर देखो,
रूह काप उठेगी,
इंसान हो ना,
या भूल गए की कोन हो?

उसके लिए सिर्फ भारत ही नहीं,
बल्कि सब देश खड़े है,
उसको इंसाफ मिलना ही चाहिए,
वरना सबका भरोसा उठ जाएगा|

यह ज़रुर सोचना की,
तुम कितने खुश नसीब हो,
मौत कभी भी आ सकती है,
पर ऐसा मौत किसी को ना मिले|

इंटरनेशनल कवि

निशांत वैद्य "निश" 

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