स्वरचित गीत
28/8/2020
कहाँ से आया हूँ
कहाँ को है जाना।
मैं हूँ अलबेला
और मैं हूँ दीवाना।।
नही कोई ठिकाना
नही कोई ठिकाना।
दुनियाँ है एक मेला
फिर भी सब अकेला।
ज़िंदगी में सुख दुख
को सभी ने है झेला।।
फिर भी सब है सपने ,
सब है फ़साना।।
ज़ुल्मी है दुनियाँ फिर
भी नही कुछ माने।
दूरियाँ है केवल
नही कोई जाने।।
ना है कोई अपना
ना है कोई घराना।।
चल पड़े है लेकिन
मन्जिल का ना पता है।।
अकेला रहना ही केवल दवा है।।
सुनापुन है जाने पूरा जमाना।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
1 टिप्पणियाँ
Bhaut Badiya Prakash Bhai 👌👌👌
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