मित्र जीवन का चरित्र है बनाते।
मित्र जीवन का सार है बताते।।
मित्र बिन जीवन का उत्थान नही।
मित्र ही तो दुख में साथ है निभाते।।
मित्रता हो तो जैसे सुदामा व कृष्णा।
मित्र एक हो किन्तु जो मिटा दे घृणा।।
मित्र वही जो नित दिन परेशानी दूर करता।
मित्र को हर घड़ी में दिल से मदद करता।।
मित्र तो इंसान के अलावा भी होता।
मित्र बिन जीवन का अर्थ कहाँ होता।।
मित्र बनाओ किन्तु सोचसमझ कर।
मित्र गरीब हो किन्तु हो चरितार्थ।।
मित्र ही रिस्ता जो हम स्वयं बनाते।
मित्र वही जिससे हमारे भाव मिल जाते।।
मित्र को कभी धोखा ना देना।
अपने हिस्से से भी आधी रोटी देना।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
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