प्रसिद्ध कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा 'गाँव की माटी' विषय पर रचना

प्रतियोगिता हेतु
दिनांक-29.082020
दिन-शनिवार
प्रकृति-स्वरचित
शीर्षक-गाँव की माटी
हे मित्र गाँव की मिट्टी का श्रृंगार तुम्हारे हाथों में ।
अब हरा रखो या लाल करो अधिकार तुम्हारे हाथों में ।।ब

अब तुम्हें सोचना है अपना ,
तुम कैसा नीड बनाओगे ।
चिरसुख या पद की लिप्सा में-
से तुम किसको अपनाओगे ।।

कुर्सी लोभी भौंरों का तट,मॅझधार तुम्हारे हाथों में ।
हे मित्र गाँव की मिट्टी का श्रृंगार तुम्हारे हाथों में ।।

क्यों हाँथ जोड औ दाँत दिखा,
वो हाँथ काट ले जाते हैं ।
नित पथ दर्शाने का वादा दे,
खुद ओझल हो जाते हैं ।।

क्यूँ फॅसे कबूतर से तकते-
हो वार तुम्हारे हाथों में ।
हे मित्र गाँव की मिट्टी का श्रृंगार तुम्हारे हाथों में ।।

आधार हीन तुम चित्रकार,
अवलंब उन्हें बतलाते हो ।
जो तुमपर ही आधारित हैं,
उनकी जयकार मनाते हो ।।

जो सरोकार तुमसे रख ले,
सरकार तुम्हारे हाथों में ।
हे मित्र गाँव की मिट्टी का श्रृंगार तुम्हारे हाथों में ।।

गुलशन उजाडने को बस एक,
कहते हैं उल्लू काफी है ।
हर डाल पे उल्लू भरे पडे,
अंजाम का ही दिल को गम है ।।

अब हरा रखो या लाल करो, अधिकार तुम्हारे हाथों में ।
हे मित्र गाँव की मिट्टी का श्रृंगार तुम्हारे हाथों में ।।
        गीता पांडेय
रायबरेली-उत्तरप्रदेश

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