कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा 'प्रकृति का तांडव' विषय पर रचना

           🦋 प्रकृति का तांडव🦋
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आज पूरे विश्व मे,
 मची हाहाकार।
कुपित प्रकृति,
 दिखाती रौंदरूप।
वैष्विक महामारी,
कोरोना का कहर।
 देश महामारी की चपेट में,
 चाहे गाँव हो या शहर।
दिखा रही प्रकृति,
 मृत्यु का प्रकोप।
कुदरत ने किया,
 भीषण ये संहार।
मौसम ने बदला,
 कुछ अपना स्वरूप।
कही हुई अतिवृष्टि,
 और कही प्रखर धूप।
एक तो कोरोना महामारी,
 ऊपर से बेरोजगारी।
 भीषण विभीषिका बाढ़ में,
 डूबे खेत-खलिहान,
 महाजन भरते झोली,
 बच्चे हुए भूख से परेशान।
बेरोजगार मजदूर महानगर से,
 लौटे भूखे प्यासे पैदल।
धंसी हुई आँखे बेबस,
उदर की भूख से तन निर्बल।
पैरों में पड़े पीड़ादायक छाले,
दिल मे जीने की आस।
पैदल ही कोशों दूर चले,
गठरियां का बोझ सिर पर।
आज गरीबी और भूख से हारी,
 ये भयानक कोरोना महामारी।
लॉकडाउन में चौपट,
बिजनेस और व्यापार।
खेत-खलिहान डूबे,
लगते अब अकाल के आसार।
हे प्रभु! अब कितना निग्रह दोगें,
है तुम्हारी महिमा अपरंपार।
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स्वरचित और मौलिक
 सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पाण्डेय

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