मेरे द्वारा निर्मित विधा *नेटलग्या* की एक रचना
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*छहर*
*शब्दों का जहर, बिलखता शहर*
*मच गया कहर, क्यों आज?*
*गयी वह ठहर, मेरे मन की लहर*
*बन गजल बहर, मेरी धुन।*
*ख़ुशी का पहर, गया तिरंगा फहर*
*था माहौल महर, प्रेम का।*
*बहता नही नहर, हो गया घहर*
*बन्द दिल चहर, हो गया।*
*मैं उठता सहर, तब सुनता घहर*
*देख प्रेम का छहर, आजकल।*
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*कवि-देवेंद्र चौधरी, तिरोडा*
जिला-गोंदिया (महा.)
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