कवि एम.मीमांसा जी द्वारा रचित मुक्तक

*मुक्तक*

इशारे से तिरा  मुझको, बुलाना   याद  आता है
गिरा करके  हसीं  पलकें,   उठाना  याद  आता  है
बड़ा नाजुक समय था वो,मिले थे हम कहीं छिपकर
तुम्हारा  हाल   धीरे    से,   बताना   याद  आता  है

सहेली  को  मुझे  तेरा, दिखाना   याद आता  है
दिवाना  है  यही  मेरा, बताना   याद  आता   है
कभी जब पूछती सखियाँ,कि भाता है न ये तुमको
तुम्हारा हाँ वही सिर का, झुकाना  याद आता  है

मिरी  तस्वीर   सीने  से,  लगाना   याद  आता है
किताबों में  कभी उसको, छिपाना  याद आता  है
यही जब सोचता हूँ  मैं, कि अब तुमको भुला दूं तो
तुम्हारा  सुर्ख़   होठों  से, सटाना   याद  आता  है

बदन पर  उगलियां तेरा,  गड़ाना  याद  आता  है
ज़रा  हँस  के  मुझे  तेरा,  हँसाना  याद  आता  है
न जाने तुम मिरा कितना, हमेशा ख्याल करते थे
खिलाकर और थोड़ा सा, खिलाना याद आता है

जमीं पर नाम लिख के  यूँ, मिटाना  याद आता  है
कभी   मुझसे  तिरा  नज़रें,  चुराना  याद  आता है
जुदा जब से हुए हो तुम, कभी सोया नही इक पल
मगर  जुल्फों   तले   तेरा,  सुलाना  याद  आता  है

हमेशा   ही   मुझे   तेरा,  सताना   याद   आता   है
कभी तेरा  न  मिलने  का,  बहाना  याद  आता  है
गये तुम दूर जब मुझसे,  रही ना  बात  वो  तब से
मगर  तेरा  सभी   वादा,  पुराना   याद   आता   है
                      🙏🙏🙏
                    *एम. मीमांसा*

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