कवयित्री शिवांगी मिश्रा जी द्वारा 'नदिया के पार' विषय पर रचना

शीर्षक -: नदिया के पार
विधा -: गीत

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चलो चलें नदिया के पार.....
चलो चलें नदिया के पार ।।
जहाँ पे बहती प्रेम की धार.....
जहाँ पे बहती प्रेम की धार ।
जहाँ मिले जीवन आधार ।।

चलो चलो.....हूँ....चलो चलो.....

चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।
चलो चलें नदिया के पार.......
चलो चलें नदिया के पार ।।

प्रेम की तलाश है तो चलते रहो तुम.....
चलते रहो तुम ।
जीवन के पथ पर बढ़ते रहो तुम..
बढ़ते रहो तुम ।।
प्रेम की तलाश है तो चलते रहो तुम ।
जीवन के पथ पर बढ़ते रहो तुम ।।
ठोकर मिलेंगी गिरना संभालना ।
पर ना कभी तुम रुकना ठिठुरना ।।
पा जाओगे उस पथ को तुम....
पा जाओगे उस पथ को तुम ।
मिलेगा तुमको जहाँ पे प्यार ।। (१)

चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।
चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।।
चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....

जीवन कठिन है जीते रहो तुम....
जीते रहो तुम ।
विष का है प्याला पीते रहो तुम....
पीते रहो तुम ।।
जीवन कठिन है जीते रहो तुम ।
विष का है प्याला पीते रहो तुम ।।
बढ़ते रहो तुम हार ना मानो ।
आयी घड़ी जब तुम खुद को जानो ।।
जीतोगे परीक्षा जीवन की तुम ही.....
जीतोगे परीक्षा जीवन की तुम ही ।
पा जाओगे जीवन का सार ।।


चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।
चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।।
चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....

अपनों का रिश्ता मतलब की सानी....
मतलब की सानी ।
जीवन में विपदा हैं आनी जानी...
हैं आनी जानी ।।
अपनों का रिश्ता मतलब की सानी ।
जीवन में विपदा हैं आनी जानी ।।
दुनिया में मतलब मतलब से रिश्ता ।
अब ना है मिलता कोई फरिश्ता ।।
कर जाओ तुम जीते जी ऐसा....
कर जाओ तुम जीते जी ऐसा ।
याद करे ये तुमको संसार ।।

चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।
चलो चलें नदिया के पार......
चलो चलें नदिया के पार ।।
चलो चलो...हूँ.... चलो चलो.....

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना
स्वरचित....
शिवांगी मिश्रा
धौरहरा लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश

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