शीर्षक - *नारी शक्ति*
हे नारी तुम अबला नहीं सबला हो
धरा पर विधाता की अनुपम ज्वाला हो
ज्ञान चरित्र जो साध लिया तुमने
मानो जग को बदल दिया तुमने
हर हृदय को मथ दिया तुमने
यदि स्वयं की सुन ली तुमने
अपनी आत्म शक्ति के तुम यदि गीत गाओगी
युग को बदलती चली जाओगी
तुम्हारी कोख शौर्य संतानों से हुई कभी खाली नहीं
तुम ने कौन सी शक्ति अपनी गोद में पाली नहीं?
तुम अपनी शक्ति साध लो अगर
शौर्य शिशुओं का बढ़ाती जाओगी
छोड़ दो रूढ़ियां तोड़ दो बेड़ियां
अंधविश्वास कुप्रथायें मिटा दो अगर
दंभियों का दंभ मिटाती चली जाओगी
धर्म कर्म का मर्म समझ कर दीप ज्ञान का जलाओगी
वक्त की पुकार स्वयं ही समझ जाओगी
धरा पर स्वर्ग का श्रृंगार सजा जाओगी
हे नारी तुम अबला नहीं सबला हो
धरा पर विधाता की अनुपम ज्वाला हो
शिव भी निरा शव हैं जब तक तुम्हारी शक्ति नहीं
बृहम्मा में बुद्धि का ज्ञान कहां जब तक शारदा का साथ नहीं
विष्णु करेंगे पोषण कैसे जब तक लक्षमी का वरद हस्त नहीं
तुम्हारी माया विन त्रिभुवन में कोई श्रृंगार नहीं
जो तुम्हारी भक्ति करता और ध्याता है
तब ही नर जग में कुछ कर पाता है
पर जैसे ही नर दंभी बन जाता है
तुम बन जाती सिंह वाहिनी तुम बिन कोई नहीं मोक्ष पाता है
हे नारी तुम अबला नहीं सबला हो
धरा पर विधाता की अनुपम ज्वाला हो
🙏 वन्दे मातरम् 🙏
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित एवं मौलिक है
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