काश्मीर हमारा है

🌾काश्मीर हमारा है 🌾
***********************

करत किलोल नित नव कल-कल जल सिन्धु की धारा है।
हिम शिखरों से आच्छादित शीत नम का झरत फुहारा है।
सज -धज कर प्रकृति ललाम अपना सौंदर्य पसारा है।
आर्यावर्त का मुकुट अनुपम काश्मीर हमारा है।

बारहो मास मधुमास मनोरम जन-जन को अति प्यारा है।
फल -फूलों से लदा भरा स्वास्थ का सबल सहारा है।
अनुपम हरियाली छटा निराली पूर्ण जगत से न्यारा है।
वसुन्धरा पर स्वर्ग सलोना काश्मीर हमारा है।

इसकी रक्षा हेतु सदा पूर्वजों ने सब सुख वारा है।
प्राणों की आहुति दे करके इसको सिंचा संवारा  है।
आर्यावर्त के वीर सपूतों ने हरदम ललकारा  है।
सर्व विदित है सदा से ही काश्मीर हमारा है ।

शांति ,शुभ ,सिख पूर्ण विश्व में विश्वगुरु ही हारा है।
होश में आओ शर्म करो टूटा तिन सौ सत्तर धारा है।
हिन्द आन ,मान ,स्वभिमान हेतु लख सकता कोटि नजारा है।
बलगदान भी देगा "कवि बाबूराम" बेशक काश्मीर हमारा है।

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
*************************

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
*************************
                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
*************************   
                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
*************************
                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
*************************
मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
*************************

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ