कवयित्री मीनू मीना सिन्हा मीनल जी द्वारा 'तेरे पाँव' विषय पर रचना

*जय माँ शारदे*
*सुप्रभात*

*तेरे पावंँ*

जीवन सफल हुआ है मेरा
                छूकर मांँ तेरे पावंँ
क्या कहूंँऔर क्या मांँगू
          मिल गई अब तो तेरी छांँव।

 करती हूंँ मैं पूर्ण समर्पण
               चरणों में खो जाऊंँ मैं
पकड़ लिया है पांँव तेरे
                  अब नहीं छोडूंँगी मैं।

सहमी थी, देखूंँ पताका
             दर्शन दिया तूने बारंबार
 सबकुछ मिल जाता है उसे
                  आते हैं जो तेरे द्वार।

रास्ते सुगम हो जाते
              होता नहीं कुछ भी दुर्गम
अगम, अगोचर, अनुपम, सुंदर
               मनभावन मांँ, मधुरतम।

कभी सती, कहीं कृष्णानुजा
            कभी वनदुर्गा कहीं नंदजा
हे पूर्णपीठ, हे पूर्णविग्रह
  विध्यंवासिनी, काली, मां अष्टभुजा।

त्रिकोण यात्रा कर पूर्ण करूंँ
           माँ भवानी अपनी कहानी
तेरे पांँव में नजर है अटकी
           जीवन हुआ है पानी-पानी।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी
            करते रहते आपकी पूजा
गंगा की कलकल धारा
         शक्ति नहीं कोई और है दूजा।

अतिसुंदर- अतिमनभावन
                    पांँव तेरे हैं मेरी माँ
पकडूंँ, पूजूंँ और पडूंँ 
         शरणागत हूँ विध्यांचल मांँ।
                ****
*मीनू मीना सिन्हा मीनल*
राँची

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