लघुकथा#प्रकाश मधुबनी#राघवेंद्र का लक्ष्य

बदलाव मंच

स्वरचित रचना

राघवेंद्र का लक्ष्य

आज राघवेंद्र बिल्कुल बच्चे की तरह रो रहा था।बस रोये जा रहा था।मैने पूछा क्या हुआ बेटा, क्यों रो रहे हो? वह रोते रोते बोला वो सब मुझे लँगड़े लँगड़े कह कर चिड़ा रहे थे। मेरे साथ क्लास में सब दोस्ती करने से कतराते है कभी कभी तो मुझसे ऐसे घृणा करते है कि मानो मैं किसी अभिसाप से श्रापित हूँ। मैं न...न...नही जाऊंगा अब स्कूल मुझे नही पढ़ना उनके साथ।मैं उसको लेकर परेशान था कि आखिर इसे कैसे समझाऊ की ये तो आम बात है किसी कमजोर को सताना।भला वो तो बच्चे है उनको कौन बताए कि इससे राघवेंद्र के मन पर क्या बीतती है।मैंने राघवेंद्र को बुलाकर अपने साथ अकेले कमरे में ले गया।मैं उसके भाव को समझना चाहता था। मैंने उससे पूछा कि राघवेंद्र क्या हुआ पूरा पूरा माजरा तो उसने जो बताया इससे मुझे उसके मन की स्थिति मैं समझ गया। मै उसके दर्द को घृणा के ज गह उसे सकारात्मक भाव में बदलना चाहता था। मैं अब केवल उसके मन के भाव को बदलने के लिए तरीका ढूंढने लगा।मुझे कुछ सूझ बूझ नही रहा था।आखिर में मै बोला बेटा राघवेंद्र क्या तुम चाहते हो कि 
सभी बच्चे तुम्हारे साथ तो तुम्हे एक काम करना होगा।यही नही यदि ये काम तुमने कर लिया तो वो तुम्हे अपना गुरु मानने लगेंगे अँग्रेजी गणित विज्ञान हर बिषय का परांगत बन गया। मैं आश्चर्य था आखिर यह कैसे हो गया। मेरे बातो को वह इतना दिल से लगा लेगा। लेकिन देखते ही देखते सभी बच्चे उसके मित्र बन गए सब उसको साथ ले जाते ले के आते वह उनका नेता बन चुका था। मैं कही बाहर गया था वहाँ से लौटा। उसको पता चला कि चाचा जी आये है। तो वह मुझसे मिलने आया अब व्हीलचेयर के साथ कार से उतरा ड्राइवर ने उसे उतारा फिर वह व्हीलचेयर पकड़ के मेरे पैरों को पकड़ लिया।
मैं उसे उठाया व गले से लगा लिया। उसने बताया कि अब वह एक कॉलेज का प्रोफेसर है। मैने उसके परिवर्तन देख समझ गया कि माँ शारदे के द्वारा बदलाव है मैंने मन ही मन धन्यवाद किया माँ शारदे को। 
सीख जीवन में यदि कोई कमजोरी हो तो उसका हल एक ही है उससे बेहतर कोई ता ताकत बनाओ अथवा ढूंढो जिससे कमजोरी का स्वयं नाश हो जाये।
©प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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