🌷मोहे शिव दर्शन की आस!🌷
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शिवशंकर, भोले भंडारी,
गिरिजापति चंद्रशेखर त्रिपुरारी।
भाल-चंद्र सिर जटा विराजत,
तेरी महिमा अपरंपार।
सिर मुकुल मंदाकिनी धार।
मन तड़पत शिव-दर्शन को,
लगी भोले- दर्शन की आस।
नैनों में नीर बहत अविरल,
मोरे मन मे लगी है आस।
देखत-देखत रैना बीती,
बीते ग्रीष्म तन ठिठुरन लागे।
देखत-देखत बीत गए चौमास,
अँखियन में शिव-दर्शन की प्यास।
गौरी-नाथ गिरीश त्रिलोचन,
नयना नीर बहावत लोचन।
अब बीतत है मधुमास,
मोहे शिव-दर्शन की आस।
देखत -देखत सावन आएँ
काले बदरा जल बरसायें।
गिरिजापति, पर्वत वासी, कैलाश,
मोहे शिव दर्शन की आस।
💐समाप्त💐 स्वरचित व मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका शशिलता पाण्डेय
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