🙏🙏मंच को सादर नमन 🙏🙏
विषय : विचार के विकार
(कविता )
जिंदगी के हर रंग को देखो
विचारणीय सन्देश का घोतक है..
कहीं ये शांति का प्रतीक तो
कहीं हरियाली का सूचक हैं..
पर मानवता के घृणित सोच ने देखो
हर रंग का अर्थ ही बदला हैं..
कहीं यह हिन्दू का प्रतीक तो
कहीं मुस्लिम का झंडा हैं..
मानो, रंग भी ये पूछ रहे हैं
क्यूँ मुझे जाति-धर्म में बांधा हैं..
अपने झूठे दम्भ की ख़ातिर
क्यूँ मेरी स्वतंत्रता का गला घोंटा हैं..
माँ की इस पावन धरती पर देखो
हर रंग, पुष्प औ हरियाली का बसेरा हैं..
जो नित्य नया सवेरा लेकर
तुम्हारे जीवन को महकाने आता हैं..
प्रकृति के इस अद्भुत सृजन का
हृदयतल से तुम सम्मान करो..
करो ना इसे तुम अब रक्तरंजित
मानवता पर अब ना कुठाराघात करो..
मानव हो तुम मानव ही बन
प्रकृति के रंगों का सम्मान करो..
मिटाओ दिल से घृणा, दम्भ को
मानव बन तुम मानवता का मान करो.. !!
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शालिनी कुमारी
शिक्षिका
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )
(स्वरचित मौलिक रचना.. )
1 टिप्पणियाँ
Nice
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