कवयित्री जयंती सेन 'मीना' जी द्वारा 'पनाह...'विषय पर सुंदर रचना

पनाह........

जो शुरू ही न हो सका अभी,
उसके अंजाम की बात सोचती हूँ ।
कौन है वो, जिसके आने से पहले ही
जाने के बाद के ,तूफान की बात
सोचती हूँ ।
एहसासों की आंधी और 
काले बादलों  के साये में ,        
भरोसे का हाथ थामे मुशिकल राहों पर ,
चलने की बात सोचती हूँ।।
ऐसी एक सोच के साथ
तुम्हारे संकल्प से गांठ जोड़कर ,
लाल चूनर में लिपटकर घर बसाने की,
बात सोचती हूँ ।। 
कहो,कभी ऐसा भी होता है.......
या इस बारे में कुछ सोचना भी,
गुनाह है ।
जमीन पर रहकर ,आसमां में उड़ने की
चाह रखना,
किसी परकटे पंछी के सपनों की
पनाह  है।।


यह मेरी नितांत मौलिक रचना है।

जयंती सेन 'मीना' , नई दिल्ली ।
9873090339

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