कवि अनुराग बाजपेई जी द्वारा 'विश्वगुरु भारत' विषय पर रचना

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

है विश्व गुरु जो कहलाया,
तो विश्व गुरु सा मान रहे।

सांसों में बसता है राष्ट्र धर्म,
न भूले कोई ये अपना कर्म।

लेखिनी की ये जलती ज्वाला,
ये युद्ध सदा अविराम रहे।

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

हैं वेद शास्त्र पुनीता हम,
यूँ तो हैं विश्व विजेता हम।

मृदु भाषी भी हैं कहलाते,
पर वक़्त पड़े हैं चीता हम।

है शौर्य भरा इतिहास रहा,
बस इतना सबको अनुमान रहे।

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

भगत सरदार और आज़ाद,
इस माटी से जन्में हैं।

अब भी बसते हैं कलाम,
जिंदा हैं दिलों में हममे हैं।

अगर नहीं है तो याद करो,
लक्ष्मीबाई का भी ज्ञान रहे।

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

निरुत्तर नहीं हैं कोई शब्द,
पर अक्शर चुप रह जाते हैं।

हम भारत के वीर सदा,
चुप रह कर भी समझाते हैं।

कितने ही तोड़े चक्रव्यूह,
मां से मिला ये वरदान रहे।

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

हो छोटी आँख या टोपी धारी,
देखो फ़िर से जलाई है अज्ञारी।

है हवन समापन अन्तिम क्षण,
उठ न बैठे वीर बहुत हैं बलिहारी।

न क्रोध दिलाओ ज्वाला को,
जल जाओगे इसका भान रहे।

है अजर अमर ये भारत माँ,
सारे जग को ये भान रहे।

अनुराग बाजपेई(प्रेम)
पुत्र स्व०श्री अमरेश बाजपेई
एवं स्व० श्री मृदुला बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ