मंच को नमन
विषय -बहतें हुए अश्क
प्रलय
महाप्रलय
ला सकते हैं
बहतें हुए अश्क
विशाल समंदर
रत्नों की खान
भूल जाता है अपना विस्तार
देखकर
बहतें हुए अश्क
बदल देते हैं
जीवन का अर्थ
विद्वान ज्ञानी ऋषि
भूल जाते हैं अपना लक्ष्य
देखकर
बहतें हुए अश्क
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक)कोंच
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