🌹गाँव की मिट्टी🌹
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मैं तो अब, बस गया शहर में,
दिल गाँवो, में रहता है।
मेरा मन, मद-मस्त हवा के,
झोंके जैसा, बहता है।
इन बंद, किवाड़ों के भीतर,
घुट-घुट के यह कहता है।
गाँव हमारा अपना घर,
ये शहर ,पराया होता है।
मेरा अपना ये गवाँर दिल,
अपने गाँव मे रहता है ।
सोंधी मिट्टी, की खुश्बू की,
बस याद ,दिलो में रहती है।
बेफिक्र, हवाओं का मौसम,
दिल को, तड़पाता रहता है।
फागुन में, पीले सरसों फुले,
सावन में, लगते जो झूले।
हरियाली की, छटा निराली,
हम गीत- कजरी ना भूले।
रक्षा-बंधन में बहना का,
स्नेह मधुर ,जो दिल को छू ले।
आमों की बगिया, में कोयलिया,
कुहू-कुहू का, मधुर -स्वर बोले
पीहू-पीहू बोले, जब पपीहा,
मेरा भी मनवा हौले-हौले डोले।
मेरा गवाँर दिल ,बसा शहर में,
पर हम तो है, अपने गाँव के ''भोले''।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पाण्डेय
💐.समाप्त💐
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