*कुछ सोचा नहीं है* "
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मेरी कलम सच ना लिख पाये तो क्या
हमारी आँखों ने जो कहा
वो बात है पाकीज़ा मोहब्बत की
कुछ भी सोचा विचारा नहीं है :
चाँद तेरा यूँ कभी गुम हो जाना,
आदतन ही कभी वापस आना
फिर बादलों में छुप-छुप के मिलना
अब ये मुझको गवारा नहीं है :
देख करके भी नहीं देखतीं हैं,खुद को
क्यूँ ये नजरें इनदिनों तुम्हारी ?
खुल के बयां करो दिल का हाल
है कौन वो जिसे तु प्यारा नहीं है:
*®©आराध्या*
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