कवयित्री आराध्या जी द्वारा 'कुछ सोचा नही है' विषय पर रचना

*कुछ सोचा नहीं है* "
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मेरी कलम सच ना लिख पाये तो क्या 
हमारी आँखों ने जो कहा 
वो बात है पाकीज़ा मोहब्बत की
कुछ भी सोचा विचारा  नहीं है  :

चाँद तेरा यूँ कभी गुम हो जाना,
आदतन ही कभी वापस आना
फिर बादलों में छुप-छुप के मिलना
अब ये मुझको गवारा नहीं है :

देख करके भी नहीं देखतीं हैं,खुद को 
क्यूँ ये नजरें इनदिनों तुम्हारी ?
खुल के बयां करो दिल का हाल 
 है कौन वो जिसे तु प्यारा नहीं है:

*®©आराध्या*

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