माँ

बदलाव साहित्य मंच

दिनांक- 09-08-2020

शीर्षक - माँ
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स्वरचित कविता
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धरती पर जीवों के लिए ,
ईश्वर का अवतार है मां|1|

    सींचे ख़ून और दूध से ,
     बीज को पेड़ बनाती मां।२|

अन्नपूर्णा बन पेट भरे ,
खुद भूखी सो जाती मां|३|

      शिक्षित हो चाहे ना हो ,
      पहली शिक्षक होती मां|४|

बच्चे की रक्षा के  लिए ,
जगदम्बा बन जाती मां |५|

      छल  ले तूं  कितना भी ,
       निश्छल प्यार लुटाती मां|६|

करूणा ममता वात्सल्य ,
भावो का भंडार है मां |७|

    बदले में कुछ नहीं चाहती ,
    तेरे  सुख में  सुखी  है मां|८|

निर्मला सुत रमेश यह कहें ,
आशीष लुटाती रहती मां|९|
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कवि: रमेश चंद्र भाट, रावतभाटा, चितौड़गढ़, राजस्थान।
9413356728

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