कवि प्रकाश कुमार जी द्वारा 'हे गुरुवर' विषय पर रचना

बदलाव मंच

हे गुरुवर

स्वरचित रचना

हे गुरुवर हमारे गुरुदेव।
रखना ध्यान मेरा सदैव।।

फँसा हुआ मैं मझधार में।
अगर मगर के व्यवहार में।।
भूल से ना लगे कोई ऐब।

हम अज्ञानी भटक रहे है
 घिर के मायाजाल में। 
तुम हो मात्र एक सहारा
दूजा ना संसार में।।
जब भी पुकारू आ जाना।
हमारी अर्जी यही विशेष।।

तुम्ही ने सम्हाला तुम ही सम्हालो।
अबतक उबारा आगे भी पार लगादो।
करते रहना मार्गदर्शन सदैव।।

हम अज्ञानी मानुस क्या जाने।
दुनियाँ हे बेहरम ना समझे माने।।
सर से हाथ कभी ना हटाना।
ताकि जी सके सदा सत्यमेव।।

दे दो हमे आशीष 
ये भाव रखे हम।
नित नए नए 
सत्यकर्म करे हम।।
आप ही तो तुल्य देव।।


आप हो कृष्णा 
हमें अर्जुन बना लो।
सारथी बनकर हमे
फिरसे जीता दो।।
ताकि कर सके
 बुरे कर्मों से परहेज।।
©प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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