रचना का शीर्षक-आश्चर्य
जब लोग करते हैं
प्रेम की बात
होता है आश्चर्य
सुख-दुख, मान- सम्मान
प्रज्ञा पूजा श्रद्धा
आदि अलंकारों से अलंकृत कर
जब करते हैं लोग
प्रेम की बात
होता है आश्चर्य
गढ़ते हैं नए-नए अर्थ
लिखते हैं नव ग्रंथ
लेकर
वेदना विरह के मापदंड
परंतु
नहीं बदलती विचारधारा
करते हैं चौराहे पर
लाज को लज्जित कर
जब करते हैं लोग
प्रेम की बात
होता है आश्चर्य
आज भी
रस गंध स्वाद की चाह में
सधे हाथों से
तोड़ते हैं कच्ची कली
अतृप्त
जब करते हैं लोग
प्रेम की बात
होता है आश्चर्य
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मालिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक)कोंच, जनपद-जालौन, उत्तर- प्रदेश-285205
Badlavmanch
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