प्यार का इज़हार

याद है- मुझे अब भी
तुमने किया था 
प्यार का इज़हार
मुझसे- 
थोड़ी शरमाई सी
थोड़ी घबराई सी 
पहली बार

वह- पहली नजर का प्यार था
जिसे छुपा न सके- हम तुम
और चल पड़ा फिर-

 सिलसिला चाहत का अनवरत
इश्क़ अंधा होता है- वह किसी को, किसी से भी हो सकता है

इश्क़ - सुंदर तन नहीं देखता, 
उम्र की सीमा  भी नहीं 
पसन्द  करता वह

दिल पर फ़िदा होने की फ़ितरत है उसकी
लेकिन-  मेरे इश्क ने  मुझे पहचान दी है..........

 -मोहम्मद मुमताज़ हसन
टिकारी, गया, बिहार


मौलिक, स्वरचित

प्रकाशनार्थ- बदलाव मंच

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